ट्रैफिकिंग से मुक्त कराए गए बच्चों का औद्योगिक इकाइयों में खट रहा था बचपन

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न्यूज स्टॉपेज डेस्क
80 फीसद हिस्सा 13 से 18 वर्ष की उम्र के किशोरों का है
विश्व मानव दुर्व्यापार निषेध दिवस के मौके पर जारी की गई केएससीएफ व गेम्स24×7 की संयुक्त रिपोर्ट

रांची। बाल श्रम और ट्रैफिकिंग से मुक्त कराए गए बाल मजदूरों में 80 फीसद हिस्सा 13 से 18 वर्ष की उम्र के किशोरों का है। इसके अलावा 13 प्रतिशत बच्चे नौ से 12 वर्ष के थे जबकि मुक्त कराए गए बच्चों का एक छोटा सा समूह ऐसा भी था जिनकी उम्र पांच साल से भी कम थी। चौंकाने वाले ये तथ्य गेम्स24×7 और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा संयुक्त रूप से जारी एक रिपोर्ट में उजागर हुई हैं। यह रिपोर्ट ‘चाइल्ड ट्रैफिकिंग इन इंडिया : इनसाइट्स फ्राम सिचुएशनल डाटा एनालिसिस एंड द नीड फॉर टेक-ड्रिवेन इंटरवेंशन स्ट्रेटजी’ 30 जुलाई को विश्व मानव दुर्व्यापार निषेध दिवस के मौके पर जारी की गई। गेम्स24×7 ने देश में 2016 से 2022 के बीच देश के 21 राज्यों और 262 जिलों में केएससीएफ और इसके सहयोगी संगठनों द्वारा जुटाए गए आंकड़ों का विश्लेषण कर इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इस समग्र रिपोर्ट को तैयार करने और तमाम आंकड़े जुटाने के पीछे मकसद ट्रैफिकिंग के मौजूदा रुझानों और तरीकों के बारे में एक स्पष्ट तस्वीर पेश करने का था ताकि इसके आलोक में सरकारें और कानून प्रवर्तन एजेंसियां ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए ठोस और प्रभावी रणनीतियां बना सकें। केएससीएफ और इसके सहयोगी संगठनों के प्रयासों से 2016 से 2022 के बीच 18 वर्ष से कम आयु के 13,549 बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया। इनमें अकेले लुधियाना से ही 563 बच्चे बाल मजदूरी के चंगुल से मुक्त कराए गए। बाल मजदूरी के शिकार बच्चों की हालत पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट बताती है कि 13 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे ज्यादातर दुकानों, ढाबों और उद्योगों में काम करते हैं लेकिन सौंदर्य प्रसाधन एक ऐसा उद्योग है जिसमें पांच से आठ साल तक के बच्चों से भी काम लिया जाता है। इससे भी कहीं ज्यादा रिपोर्ट में बाल मजदूरों का इस्तेमाल कर रहे उद्योगों का वीभत्स चेहरा भी सामने आया है।

बाल मजदूरों का सबसे बड़ा हिस्सा होटलों और ढाबों में बचपन गंवा रहा है

इसके अनुसार बाल मजदूरों का सबसे बड़ा हिस्सा होटलों और ढाबों में बचपन गंवा रहा है जहां 15.6 फीसद बच्चे काम कर रहे हैं। इसके बाद आटोमोबाइल व ट्रांसपोर्ट उद्योग में 13 फीसद और कपड़ा व खुदरा दुकानों में 11.18 फीसद बच्चे काम कर रहे हैं। इसके अलावा ट्रैफिकिंग के शिकार इन बच्चों का इलेक्ट्रॉनिक सामान और कपड़ा बनाने वाली औद्योगिक इकाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद ईंट भट्ठों, कृषि और जूता-चप्पल उद्योग का नंबर है। यहां बच्चों से उनकी उम्र के हिसाब से तमाम अलग-अलग काम लिए जाते हैं। कपड़ा बनाने की इकाइयों में जहां उनसे साड़ी की रंगाई, कताई में हेल्पर का काम, कपड़ों की सिलाई और रंगाई के काम लिए जाते हैं, वहीं, इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाले कारखानों में बल्ब बनाने और तारों की पैकिंग के काम कराए जाते हैं। हालांकि ज्यादातर फैक्ट्रियां आम तौर पर किशोरों से ही काम लेती हैं लेकिन ईंट भट्ठे और ‘रूफ टाइल’ बनाने वाली इकाइयां पांच साल से कम उम्र के बच्चों को भी काम में जोत देती हैं।

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