हर मामले में मेंटनेंस के लिए पत्नी को शादी का साक्ष्य देना जरुरी नहीं: हाईकोर्ट

न्यूज स्टॉपेज डेस्क
झारखंड हाईकोर्ट ने एहरक फैसला देते हुए कहा है कि पत्नी के रूप में साथ रह रही महिला को भरण-पोषण लेने के लिए शादी का पुख्ता सबूत देने की जरूरत नहीं है। खास कर वैसे मामले में जब साक्ष्य रिकॉर्ड पर मौजूद हो। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने रांची फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पति राम कुमार रवि की याचिका खारिज कर दी, लेकिन भरण पोषण की राशि पांच हजार से कम कर तीन हजार प्रतिमाह कर दिया।
रांची के फैमिली कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि पति अपनी पत्नी को प्रति माह पांच हजार रुपये प्रतिमाह भरण पोषण के लिए देगा। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को पति राम कुमार रवि ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। पत्नी की ओर से भरण-पोषण के लिए दायर याचिका में कहा गया था कि उसका पति 25,000 रुपये की मासिक आय के साथ मोबाइल रिपेयरिंग और रियल एस्टेट का कारोबार करता है। दिव्यांग आरक्षण केटेगरी में उसे सरकारी नौकरी भी मिल गई है, जिसके बाद उसने अपनी पत्नी को छोड़ दिया। जबकि पति ने महिला को अपनी पत्नी मानने से इंकार कर दिया और कहा कि उसकी शादी उस महिला से नहीं हुई है।

3 हजार रुपए भरण पोषण के लिए देना होगा
पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत शादी के दस्तावेजी साक्ष्य पर जोर देना हर मामले में अनिवार्य नहीं है। अदालत ने पति के दाखिल याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन रांची फैमिली कोर्ट के आदेश में बदलाव करते हुए पांच हजार रुपए प्रति माह भरण पोषण के लिए देने के आदेश को तीन हजार रुपए प्रति माह दिए जाने में तब्दील कर दिया।

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