रिम्स पर अन्नपूर्णा यूटिलिटी का आरोप: तीन करोड़ रुपये भुगतान में देरी, श्रमिकों के वेतन पर संकट

न्यूज स्टॉपेज डेस्क
राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में सफाई कार्य का दायित्व निभा रही एजेंसी एमएस अन्नपूर्णा यूटिलिटी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ने प्रबंधन के विरुद्ध गंभीर आरोप लगाए हैं। एजेंसी का दावा है कि वर्ष 2022 से हर रविवार को किए गए कार्य के एवज में श्रमिकों का पारिश्रमिक भुगतान नहीं किया गया है, जिसकी कुल बकाया राशि लगभग 3 करोड़ (तीन करोड़ रुपये) तक पहुंच चुका है। एजेंसी के द्वारा रिम्स निदेकश को प्रशासनिक पदाधिकारी के माध्यम से भेजे गए पत्र के अनुसार, हर महीने 30 दिनों में से सिर्फ 26 दिनों का ही भुगतान किया जा रहा है, जबकि शेष 4-5 दिन (जो रविवार होते हैं) श्रमिकों द्वारा लगातार कार्य किया जाता रहा है, लेकिन उनका कोई भुगतान नहीं किया गया। यह स्थिति पिछले तीन वर्षों से बनी हुई है।

भुगतान में देरी से ईपीएफ, ईएसआईसी और जीएसटी में लग रहा जुर्माना
एजेंसी ने आरोप लगाया है कि इस बकाया भुगतान की वजह से वे समय पर ईपीएफ, ईएसआईसी और जीएसटी जैसे जरूरी सरकारी योगदान जमा नहीं कर पा रहे हैं। इसके चलते उन्हें भारी जुर्माना और ब्याज चुकाना पड़ा है। एजेंसी का कहना है कि जीएसटी पर लगभग 22 लाख का जुर्माना लगा है। ईपीएफ का 49 लाख और ईएसआईसी पर 37 लाख की अतिरिक्त देनदारी लगी है। ये सब अतिरिक्त भुगतान रिम्स के रिलिभर का लगभग तीन करोड़ रूपया बकाया के कारण लगा है।

अधिकारियों से कई बार गुहार, अब तक नहीं मिला कोई समाधान
पत्र में उल्लेख किया गया है कि एजेंसी ने त्प्डै के कई वरिष्ठ अधिकारियों से मौखिक और लिखित रूप में कई बार इस बकाया भुगतान को लेकर निवेदन किया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। वहीं, रिम्स प्रशासन द्वारा भेजे गए हालिया पत्र में उल्लेख किया गया है कि यदि श्रमिक हड़ताल पर जाते हैं, तो उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज की जाएगी। एजेंसी ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि जब श्रमिकों को उनके पूरे 30 दिनों का भुगतान नहीं मिलता और उनकी मेहनत का कोई मूल्य नहीं दिया जाता, तब हड़ताल होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में कानूनी धमकी देना न केवल असंवेदनशील है, बल्कि अन्यायपूर्ण भी है।

तीन वर्षों की मेहनत का कोई मूल्य नहीं?
एजेंसी का कहना है कि वे हर रविवार को अस्पताल और हॉस्टल परिसरों में सफाई कार्य नियमित रूप से करवा रहे हैं, और यह आदेश तत्कालीन उपचिकित्सा अधीक्षक त्रिपाठी द्वारा दिया गया था। लेकिन इसके बावजूद उन्हें सिर्फ 26 दिन का ही भुगतान किया गया। एजेंसी ने रिम्स प्रशासन से अपील की है कि उनके तीन वर्षों के बकाया भुगतान को तत्काल निपटाया जाए ताकि वे सरकारी अंशदान समय पर जमा कर सकें और अनावश्यक जुर्मानों से बचा जा सके। साथ ही, श्रमिकों की मानसिक स्थिति और संस्थान की छवि को ध्यान में रखते हुए संवेदनशीलता के साथ इस मामले को देखा जाए।

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