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News Stoppage > LIFESTYLE > नंदी की पूजा के बगैर अधूरी है भोलेनाथ की साधना
LIFESTYLE

नंदी की पूजा के बगैर अधूरी है भोलेनाथ की साधना

subeditor
Last updated: July 27, 2023 3:48 pm
By subeditor
4 Min Read
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न्यूज स्टॉपेज डेस्क

रांची । अभी भगवान शिव शंकर का प्रिय महीना सावन चल रहा है. इस महीने में शंकर जी की रोज पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। अभिषेक में पूजा के दौरान या शंकर को जल अर्पण के बाद नंदी की पूजा की भी परंपरा रही है. वरना शिव पूजा अधूरी मानी जाती है। नंदी को भगवान शिव का वाहन ही नहीं बल्कि उनका शिव अवतार भी माना जाता है।

 नंदी के जन्म की कथा

पुराने समय में शिलाद नाम के एक ऋषि थे, जो ब्रह्मचारी थे, उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया। इस बात से उनके पूर्वज यानी पितर देवता दुखी थे। दरअसल शिलाद मुनि के पितरों का दुख इस बात के लिए था कि शिलाद मुनि के बाद उनका वंश ही खत्म हो जाएगा। एक दिन पितर देवता शिलाद मुनि के सपने में प्रकट हुए और उनसे संतान उत्पन्न करने के कहा, ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके।

पितरों की इच्छा पूरी करने के लिए शिलाद मुनि ने संतान की कामना से शिव जी को अपने तप से प्रसन्न कर लिया। शिलाद मुनि की तप से प्रसन्न शिव जी प्रकट हुए तो मुनि ने वरदान में एक पुत्र मांगा।

भगवान शिव ने शिलाद मुनि को पुत्र पाने का वरदान दे दिया। इसके कुछ दिन बाद जब शिलाद मुनि भूमि पर हल चला रहे थे, तब खेत में से उन्हें एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा और शिव जी का आशीर्वाद मानकर उसका पालन करने लगे।

एक दिन दो मुनि शिलाद के आश्रम आए। उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु है, इसका जीवन बहुत कम है। इस बात से शिलाद मुनि दुखी हो गए। नंदी ने शिलाद मुनि से उनके दुख का कारण पूछा तो उन्होंने नंदी को पूरी बात बताई।

पिता की चिंता दूर करने के लिए नंदी ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप शुरू कर दिया। नंदी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें मृत्यु से डरने की जरूरत नहीं है। नंदी ने शिव जी प्रार्थना की कि वे उनकी सेवा में ही रहना चाहते हैं। इसके बाद शिव जी ने नंदी को अपना मुख्य गण और वाहन बना लिया।

नंदी के कान में लोग कहते है अपनी मनोकामना

जब जब भी लोग मंदिर में शिव शंकर की पूजा करने जाते हैं तो वहां बेलपत्र, भांग, धतूरा, भगवान को अर्पण करने के पश्चात लोग बाहर निकल कर उनके सामने बैठे उनके वाहन नंदी की कानों में पूजा के उपरांत अपनी मनोकामना को कहते हैं इसके पीछे यह माना जाता है कि भगवान तो हमेशा अपनी साधना में लीन रहते हैं पता नहीं वह हमारी बातों को सुनेंगे या नहीं सुनेंगे यदि हम उनके वाहन के कान में अपनी मनोकामनाएं कह दे तो उनके साधना से उठते के साथ ही नंदी हमारी इच्छा उनके सामने बताएंगे और भोलेनाथ हमारी इच्छा को पूरा करेंगे। इसी मान्यता को मानते हुए लोग नंदी के कानून में अपनी इच्छा मनोकामना को कहते हैं।

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