
न्यूज स्टॉपेज डेस्क
देश में आतंकवाद और देशद्रोह जैसे गंभीर आरोपों में गिरफ्तार होकर वर्षों तक जेल की सज़ा भुगतने के बाद अदालत से बरी हो रहे मुस्लिम युवाओं के मामलों पर इमारत-ए-शरीया (बिहार, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल) ने गहरी चिंता जताई है। संस्था ने “جھوٹے مقدمات اور انصاف کا تقاضا” (झूठे मुक़दमे और इंसाफ़ की ज़रूरत) के मुद्दे पर सात कानूनी प्रस्ताव जारी किए हैं, जिनमें झूठे मामलों में फंसाए गए निर्दोषों के लिए मुआवज़ा, मानसिक पुनर्वास और झूठे आरोप लगाने वालों के लिए उम्रक़ैद जैसी सख़्त सज़ा की मांग की गई है।
नाम के आरोप, सालों की सज़ा
इमारत-ए-शरीया का मानना है कि धारा 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और धारा 14 (समानता का अधिकार) के तहत सरकार की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी बनती है कि बेक़सूरों को न्याय दिया जाए, न कि केवल छोड़ दिया जाए।

संसद में कानून लाने की मांग
इमारत-ए-शरीया ने भारत सरकार से तुरंत संसद में एक सख़्त और प्रभावशाली कानून पेश करने की मांग की है, ताकि निर्दोषों की जिंदगी बर्बाद करने वालों को सज़ा मिले, और जो लोग सालों तक झूठे मामलों में जेल में सड़ते रहे, उन्हें न्याय और सम्मानपूर्वक पुनर्वास मिल सके। इमारत-ए-शरीया ने झूठे मुकदमों में फंसे निर्दोष मुस्लिमों के लिए सात कानूनी सुझाव दिए। अब मांग है कि झूठे आरोप लगाने वालों को उम्र क़ैद और बेगुनाहों को मुआवज़ा व माफ़ी मिले।
अमीर-ए-शरीअत और उनकी रिसर्च टीम द्वारा तैयार किए गए इस सात
हज़रत अमीर-ए-शरीअत और उनकी रिसर्च टीम द्वारा तैयार किए गए इस सात बिंदुओं पर आधारित क़ानूनी प्रस्ताव को ध्यान से पढ़िए। अगर संसद में इस तरह का क़ानून पास हो गया, तो जेल में बंद बेगुनाह मुसलमानों को कितनी बड़ी राहत मिल सकती है। यह प्रस्ताव कई संसद सदस्यों को भेजा जा रहा है।
क्या है 7 कानूनी मांगे:
1. क्या यह पर्याप्त है कि सालों की जेल के बाद सिर्फ़ “बेक़सूर” कह दिया जाए? मानसिक और सामाजिक पीड़ा की कोई क़ीमत नहीं? सरकार इनकी मानसिक स्थिति का मूल्यांकन करवाए और प्रभावी मुआवज़ा दे — आर्थिक और नैतिक दोनों।
2. जिनकी शिक्षा, कैरियर, और समाज में भूमिका झूठे इल्ज़ामों की वजह से तबाह हो गई, उन्हें सरकार की ओर से सम्मानपूर्वक भरपाई मिले — और मुआवज़ा झूठे मुक़दमे चलाने वाले अफ़सरों की तनख्वाह या विभागीय बजट से काटा जाए।
3. क़ानूनी फीस, रोज़गार का नुक़सान, परिवहन और अन्य खर्चों की भरपाई पूरी पारदर्शिता के साथ तुरंत दी जाए।
4. प्रत्येक माह बेक़सूर लोगों का नाम, फ़ोटो और अदालत का फ़ैसला सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय अख़बारों व सोशल मीडिया पर प्रकाशित हो — और राज्य सार्वजनिक रूप से लिखित माफ़ी मांगे।
5. जिन अफ़सरों, नेताओं या एजेंसियों ने जानबूझ कर झूठे सबूत गढ़े, उन्हें कम से कम उम्र क़ैद दी जाए। सांसद के साथ अगर ऐसा हो तो जिस अफ़सर ने गिरफ़्तारी की, उसे वही सज़ा मिले जो निर्दोष ने भोगी।
6. ऐसे मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट हों, सुनवाई की समय-सीमा तय की जाए, ताकि लोग सालों तक जेल में न सड़ें।
7. हर राज्य में ऐसे बेक़सूरों का डेटा बेस और पुनर्वास बोर्ड बने — उन्हें सरकारी नौकरियों में अवसर मिले, ताकि उनका आत्म-सम्मान और समाज का भरोसा बहाल हो।
