
न्यूज स्टॉपेज डेस्क
प्रभात प्रकाशन (दिल्ली) के रांची केंद्र में वरिष्ठ साहित्यकार विद्याभूषण की उनतीसवीं पुस्तक और पांचवें कहानी संग्रह ‘अधिवास की फांस’ का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। इस विशेष कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य अकादमी, दिल्ली में मैथिली सलाहकार समिति के सदस्य प्रमोद कुमार झा ने की। मंच संचालन और समन्वय का कार्य अनामिका प्रिया ने कुशलतापूर्वक निभाया। इस अवसर पर आयोजित परख चर्चा में हिंदी कहानी के चर्चित कथाकारों और साहित्यकारों ने पुस्तक पर विचार साझा किए। चर्चाकारों में अनिता रश्मि, नीरज नीर, रश्मि शर्मा, और वरिष्ठ पत्रकार संजय कृष्ण प्रमुख रूप से शामिल रहे।

किसने क्या कहा
–अनिता रश्मि ने कहा कि संग्रह की अधिकतर कहानियां मैं से शुरू होती हैं लेकिन केवल मैं पर ही केंद्रित नहीं रहतीं। इन कहानियों में झारखंड की सांस्कृतिक विविधता, जनजीवन और परिवेश का गहराई से चित्रण है, जो पाठक को दृश्य अनुभव कराता है।
-कथाकार नीरज नीर ने कहा कि इस संग्रह की कहानियां रोचकता और संवेदनशीलता को अंत तक बनाए रखती हैं। यथार्थ की जमीन पर खड़ी इन कहानियों का प्रवाह पाठकों को सहज रूप से झारखंड के लोकजीवन से जोड़ता है।
–रश्मि शर्मा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि विद्याभूषण की कहानियों में केवल चरित्रों की कहानी नहीं होती, बल्कि परिस्थितियों और परिवेश की कहानी कही जाती है। उन्होंने कहा कि यहां कोई बनावटी नाटकीयता नहीं बल्कि वास्तविकता की ठोस परतें दिखाई देती हैं।
-वरिष्ठ पत्रकार संजय कृष्ण ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि अठारह साल पहले जब वे दैनिक जागरण से जुड़कर गाजीपुर से रांची आए थे, तब विद्याभूषण की एक पुस्तक ने उन्हें झारखंड को समझने में मदद की थी। उन्होंने बताया कि ‘अधिवास की फांस’ की कहानियों में आदिवासी जीवन, संस्कृति और संघर्ष का यथार्थपरक चित्रण है, जो इसे विशेष बनाता है।

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